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भारत में ब्राह्मण आरक्षण को समाप्त किये जाने एवं संविधान में संशोधन की जरुरत


जैसा कि आप जानते हैं कि आज तक ब्राह्मणों द्वारा मंदिरों पर अनाधिकृत कब्ज़ा बनाये रखा हुआ है। यह अनाधिकृत इसलिए है क्योंकि कोई भी देवता चाहे वह राम, कृष्ण,  शिव, गणेश आदि ब्राह्मण नहीं थे तो किस अधिकार से ब्राह्मण सालों साल से मंदिरों में अपनी आरक्षण व्यवस्था बनाये बैठे हैं ।

ब्राह्मण कभी भी दलित या पिछड़ा नहीं रहा व अब उसे इस जातिगत आरक्षण की जरुरत नहीं है ।


पिछले हज़ारों सालों से इन्होंने भगवान का डर दिखा कर के खूब कमाया है व किसी भी अन्य जाति को इसका लाभ नहीं मिला है ।

इस जाति आरक्षण का लाभ जहां कुछ खास लोग परिवार समेत पीढी दर पीढी लेते जा रहें हैं वहीं वे इसे निम्नतम स्तर वाले को अपने ही जरूरतमंदों लोगों तक भी नहीं पहुंचने दे रहे हैं । 
अन्यथा हज़ारों वर्षों में हर वर्ग के व्यक्ति तक इसका लाभ पहुँच चुका होता ।
मंदिरों में आरक्षण का आधार जाति किये जाने से जहाँ अन्य वर्ग के तमाम निर्धन व जरूरतमंद युवा बेरोजगार व हतोत्साहित हैं व कुंठित और उत्साहहीन हो रहे हैं, वहीं समाज में जातिवाद का जहर बड़ी तेज़ी से बढ़ता जा रहा है ।

अत: राष्ट्र के समुत्थान व विकास के लिये संविधान में संशोधन करते हुये इस ब्राह्मण आरक्षण को समाप्त करने की जरुरत है ।

आरक्षण को पूर्ण रूप से समाप्त करने से पहले अगर वंचित वर्ग तक इसका ईमानदारी से वास्तव में सरकार लाभ पहुँचाना चाहती है तो पहले इस ब्राह्मण आरक्षण को ख़त्म कर सभी जातियों को बारीबारी से लाभ दिया जा सकता है।

आयकर की सीमा में यह आ ही नहीं पाते हैं क्योंकि यह तो अपनी अघोषित आय छुपा ही लेते हैं । ब्राह्मणों के परिवार को इस आरक्षण से वंचित किया जाना चाहिये ताकि राष्ट्र के बहुमूल्य संसाधनों का सदुपयोग सुनिश्चित हो सके ।

इस आरक्षण के बदौलत इनके परिवारों के कई बच्चे विदेशो में पढ़ रहे हैं व नौकरी कर रहें है । इसके बावजूद वे इसको ब्रेन ड्रेन का नाम लेकर अपने ही देश के संविधान को व अपने देह को बदनाम करते हैं जबकि यह लोग सालों से मजे कर रहे हैं ।

ये विचार लेखक का है, choarut.com माध्यम मात्र है. 

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