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बाल श्रम एवं सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय


संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार चौदह वर्ष के कम उम्र के बच्चों को किसी प्रकार के जोखिम भरे काम में लगाया जाना मना है |

संविधान की धारा 39 (ई) के अनुसार राज्य ऐसी व्यवस्था करें की बच्चों को नाजूक उम्र का दुरुपयोग न हो | धारा 39 (एफ) में प्रावधान है की राज्य ऐसी सुविधाओं एवं अवसरों की व्यवस्था करेगा जिससे बच्चे स्वत्रंता एवं सम्मान के साथ स्वस्थ तरीके से विकसित हो तथा उनका बचपन शोषण से सुरक्षित हो |




उपरोक्त प्रावधानों के बावजूद हमारे देश के बच्चे होटलों, स्टेशनों, फैक्ट्रियों एवं अन्य सार्वजानिक स्थानों पर अपनी पारिवारिक परिस्थितियों से मजबूर होकर कार्य करने को विवश है एवं उनका काफी शोषण हो रहा है | हमारे देश में शिवकाशी (तमिलनाडु) जहाँ दियासलाई एवं पटाखों की कई फक्ट्रियां है, को बाल मजदूरी के खिलाफ एक आन्दोलन के रूप में लिया गया | वहां की असहनीय स्थिति को देखकर प्रसिद्ध अधिवक्ता श्री एम. सी. मेहता ने संविधान की धारा 32 के अंतर्गत न्यायालय कि शक्ति को प्रयोग में लाने का निर्णय लिया क्योकि शिवकाशी में संविधान की  धारा-24 के अंतर्गत बच्चों के सुरक्षित अधिकारों का हनन हो रहा था | 

उन्होंने इस सम्बन्ध में भारत के उच्चतम न्यायलय में एक याचिका दर्ज करवायी जो एम.सी. मेहता बनाम तमिलनाडु राज्य एवं अन्य के नाम से विख्यात है तथा जिसका फैसला माननीय न्यायधीश श्री कुलदीप सिंह, माननीय न्यायधीश श्री वि.एल. हंसारिया एवं माननीय न्यायधीश श्री एस.वी. मजुमदार ने 10 सितम्बर 1996 को दिया था |

एम.सी. मेहता द्वारा दर्ज याचिका सं. – 465/1986 में निम्नलिखित बातें थी | 31 दिसंबर 1985 में शिवकाशी में दियासलाई एवं पटाखा बनाने वाली 221 फक्ट्रियों का रजिस्ट्रेशन था जिसमें 27,338 व्यक्ति काम करते थे | उनमे बच्चो की संख्या 2941 थी | अदालत ने यह देखा की फैक्ट्रियां में फायर वर्क्स से सम्बंधित प्रक्रियाएं ऐसी है जिससे खतरनाक किस्म की दुर्घटनाएँ हो सकती है और उस खतरनाक प्रक्रिया में बाल श्रमिकों को नियोजित कर उनका शोषण जारी रखा गया था | 

शिवकाशी की एक पटाखा फैक्ट्री जिसमें भयानक विस्फोट से घटित दुर्घटना में 39 बाल श्रमिकों की मृत्यु की खबर पर, अदालत ने संज्ञान लेते हुए उच्चतम न्यायालय के तीन अधिवक्ताओं की एक समिति गठित किया | समिति को सिफारिशों से युक्त एक प्रतिवेदन प्रस्तुत करना था की संविधान की धारा 24,39 (एफ) एवं 45 के आलोक में बच्चों की जिंदगी में सुधार किस प्रकार लायी जाय | 

पुन: न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह, न्यायमूर्ति वि.एल. हंसारिया एवं न्यायमूर्ति एस.वि. मजुमदार की खंडपीठ ने 10 दिसम्बर 1996 को अपने निर्णय में केंद्र एवं राज्यों को करवाई हेतु निम्नांकित आदेश पारित किया –

(1) खतरनाक नियोजन में लगे बाल श्रमिकों का सर्वेक्षण आदेश की तिथि से छ: माह के भीतर पूरा कर लिया जाय | बाद में अन्य सर्वेक्षण किया जाय |

(2) बाल श्रम कराने वाले नियोजक से श्रम कानून के उलंघन के जुर्म में प्रति बल श्रमिक 20,000 रूपये मुआवजा के रूप में लिया जाय | अधिनियम के अंतर्गत नियुक्त निरीक्षक इसे सुनिश्चित करेंगे |

(3)   प्रत्येक जिले में जिलाधिकारी के अधीन बाल श्रमिक पुर्नवास साह कल्याण कोष गठित किया जाए जिसमे यह मुआवजा जमा किया जाय | इस रकम को और अधिक बढाने के लिए इसे किसी राष्ट्रीयकृत बैंक में जमा कर दिया जाना चाहिए | इस राशि के ब्याज से होनेवाली आय बाल श्रमिक को प्रत्येक माह भुगतान किया जाय | श्रम विभाग के सचिव इसका अनुश्रवण करेंगे |

(4)   सरकार बाल श्रमिकों के परिवार के किसी व्यस्क व्यक्ति को वैकल्पिक रोजगार मुहैया कराएगी | यदि सरकार वैकल्पिक रोजगार न दे सके तो प्रत्येक बाल श्रमिक के लिए 5,000 की डर से राशि बाल श्रमिक पुनर्वास साह कल्याण कोष में जमा कराएगी | इस प्रकार 20,000+5000 = 25,000/- से होनेवाली आय बाल श्रमिक के परिवार को दिया जाय | इस राशि का भुगतान या वैकल्पिक नियोजन बंद कर दिया जायेगा यदि बाल श्रमिक पढने नहीं जायेगा |


 (5) काम से हटाये बाल श्रमिक की समुचित शिक्षा सुनिश्चित किया जाय जिससे की वह शिक्षित नागरिक बन सके | संविधान 45 में 14 वर्ष तक के बच्चों को अनिवार्य एवं मुफ्त शिक्षा देने का उल्लेख है |

(6) गैर खतरनाक नियोजन में लगे बच्चों से प्रतिदिन छ: घंटे से अधिक कार्य न लिया जाय | उन बच्चों को दो घंटे की शिक्षा की व्यवस्था नियोजक द्वारा अपने खर्च पर किया जायेगा |
(7) यदि उक्त निर्देशों का पालन न किया जा रहा हो तो बालश्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम के अंतर्गत दोषी नियोजकों को 20,000 तक जुर्माना एवं एक वर्ष तक कारावास की सजा हो सकती है |

(8)  राज्य के श्रम विभाग में अलग से एक कोषांग बनाया जाय | कार्य का अनुश्रवण श्रम विभाग के सचिव करेंगे |
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नीतीश कुमार मंडल

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