जन्माष्टमी का मेला : अमन आकाश
- चाची, जिलेबी कइसे दे रहे हैं?
- बीस रुपे किलो!
- तीन रुपैय्या का दे दीजिए!
- तीने रुपा का लोगे ता एतना चिचिया काहे रहे थे.. तुम्हारे चक्कर में हमारा तीन ठो ग्राहक भाग गया.. खाली जिलेबिए लोगे कि मुरही भी तौल दें. आलूओ चौप गरमे छाने हैं अभी.
जन्माष्टमी का मेला लगा हुआ है. कृष्णजन्म के रात में हर साल बारिश होता है फिर भी अगला दिन मेला लगने में कोनो कसर नहीं रहता.. पूरा गाँव लाल-पियर फूंकना, पिपही आ जिलेबी-चौप के छनन-मनन से महमहा रहा है. कहीं कोई बुतरू अपने महतारी को फूंकना खरीदने के लिए खींचले ले जा रहा है तो कहीं कोई चल छैयां-छैयां वाला मोबाइल के लिए माटी में ओंघरा रहा है. नया-नया जवान हुआ लईका सब फोचका वाला को घेरले खड़ा है. फोचका खा कम रहा है आ सिंदूर-टिकुली के दोकान पर खड़ा लइकियन के भीड़ को ताड़ बेशी रहा है.. फोचका वाला भी सब समझ रहा है.. उधर फूंकना वाला ता अईसा लग रहा है जईसे अपना फेंफड़ा के सारा हवा फूंकने में भर देगा..
हम दुपहरिए से बाबा को खोज रहे हैं.. मेला देखने के लिए पईसा बाबा ही देते थे.. बाबा पहीले दादी को पैसा देते, दादी खुदरा करा के रखतीं फिर हमलोगों को मिलता.. हम घर में सबसे बड़े थे त हमारे हिस्सा में दसटकही आता था.. ऊ दस रुपया में हम फोचका खा लेते, मुरही-जलेबी खा लेते, हाथ पर ललका मेहँदी वाला ठप्पा से ॐ नमः शिवाय लिखवा लेते, एगो मीठा पानो हो जाता आ अंत में भाड़ा पर एकाध कॉमिक्सो पढ़ने के लिए ले आते.. अरे हाँ याद आया, ऊहे टाइम में मित्थुन, सचिन आ दिव्या भारती का पोस्टर मेला से खरीदकर घर का एगो पूरा देवाल छाप दिए थे..
पूरे गाँव में कम से कम दस जगह पूजा का पंडाल लगता था. कहीं बुनिया का परसादी, कहीं अमरुद-केला त कहीं आटा वाला.. भर मुट्ठी आटा वाला परसादी फांक के कभी फूफा बोले हैं.? नहीं बोले ता का किए अपने जीवन में महराज! सब पंडाल में परसादी खाते अपने मित्रमंडली के साथ पूरे गाँव का एक चक्कर.. किसी के पास दू रुपैय्या है, किसी के पास पांच ता कोई पईसा के लिए अपने घर से आधा किलो धान बेचने लाया है.. अरे हाँ, हमारा फइशन सेन्स ता पूछिए मत.. सीधे गोविन्दा-चंकी पांडे को टक्कर देते थे.. पियरका शर्ट-ललका पइंट के नीचे हरियक्का हवाई चप्पल पहिनने का हिम्मत रनबीर सिंहो नहीं कर सकता है.. ऊपर से सरसों तेल लगाके मम्मी जो बाल सोंट देती थी, मर्जी है कि बड़का चक्रवातो में एगो बाल इधर से उधर हो जाए..
अब सांझ ढल रहा है.. रात होने लगा है.. मेला वाला लोग सब धीरे-धीरे मुरही-कचरी लेके घर लौट रहा है.. भर रास्ता कोई पिपही बजाते जा रहा है त कोई फूंकना फूट जाने पर चिचियाते जा रहा है.. हम भी अपना मित्र मंडली के साथ लौट रहे थे कि रस्ते में महेन चचा भेंटा गए.. लुंगी ऊपर उठा के कमर में खोंसे आ हाथ में पतरका सटका लिए.. बुझा गया कि चिंटुआ फेर आज कुछ तूफानी किया है.. चचा हमको रोके आ पूछे..
- अरे तुमलोग चिंटुआ को देखा है? ससुरा दुपहरिए से गायब है.. महतारी का पइसा चोरा के भागा है.. आज अगर मिल जाए ता ईहे सटका से सब मेला घूमना हम निकाल देंगे.. तुम्ही सब उसको बहसा दिया है..
- हम नहीं देखे हैं चचा.. हमारे साथ त आज ऊ अइबो नहीं किया है.. बताओ ना रे बिक्कुआ, आया है आज ऊ हमारे साथ..!
चचा दांत पीसते आगे बढ़ गए.. अब हम उनको का बताएं कि चिंटुआ तीन रुपैय्या देकर भीसीआर में मित्थुन चकरबरती का धमाकेदार एक्शन फिलिम देख रहा है.. पप्पा को नहीं बताओगे वाला मम्मी-कसम देकर..
- Aman Aakash
Bahut nik Bhai Ji
ReplyDeleteBahut nik Bhai Ji
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