गांव-घर की पहली कड़ी : आजादी के 71 साल बाद भी टुटे नाव के सहारे कट रही है जिंदगी । पढ़िए पूरा रिपोर्ट
गांधी जी ने कहा कि था कि भारत की प्रगति ग्राम स्वराज की अवधारणा में छिपी है। इसके लिए उन्होंने पंचायत सरकार की बात कही थी। गांधी जी की मंशा के अनुरूप संविधान में भी नीति निर्देशक तत्वों में ग्राम पंचायत सरकार की बात कही गयी। 73 वें संशोधन द्वारा इसे मूर्त रूप दिया गया। प्रखंड में इसके अंतर्गत 2000-01 में प्रथम चुनाव द्वारा पंचायत सरकार अस्तित्व में आयी। हाल में संपन्न चुनाव के द्वारा पंचायतों में चौथी पंचायत सरकार अस्तित्व में है। करीब दो दशक में पंचायतों की ताकत भी काफी बढ़ी है। लोगों की उम्मीदें भी परवान पर हैं। ChorauT News इन्हीं उम्मीदों व उनके धरातल पर उतारने की कवायद पर गांव-घर कालम शुरू किया है। जिसके पहली कड़ी में आज चोरौत प्रखंड के भंटाबाड़ी पंचायत की बात होगी।
भंटाबाड़ी पंचायत में कुल पांच गांव पड़ते हैं। आबादी के हिसाब से सबसे बड़ा गांव भंटाबाड़ी है। जहां एक तरफ नदी है। घुघला और मिसरिया गांव भी नदी के किनारे है। यहां के लोगों की रोजमर्रे की जिंदगी टूटे नाव के सहारे कट रही है। पूरी खेती बारी नदी पार होती है। गांव में कुछ परिवार की महिला सदस्यों को छोड़ पुरूष वर्ग के लोग नदी पार कर डेरा पर रहते हैं। केवल खाना से उनका नाता गांव से रहता है। लेकिन यह खाना भी उन्हें नदी पार कर या टूटे नाव से आकर ही खाना पड़ता है। एक गांव के लिए दक्षिण में नाव चलती है। अंचल अधिकारी ने नाव खेबने पर रोक लगा दी है । किंतु ग्रामीण खुद नाव खेब रहे हैं, तब जाकर लोगों का बेड़ा पार हुआ। यहां के छात्र-छात्राओं की मुसीबत ज्यादा बढ़ जाती है। उन्हें नाव नदी में न रहे तो पढ़ाई स्कूल की बंद हो जायेगी।
पुल नहीं बनने से नौनिहालों का भविष्य अंधेरे में
प्रखंड के भंटावारी गांव में पुल नही बनने से गांव की विकास के साथ-साथ छोटे-छोटे नैनिहालों का भविष्य अंधकार में है।पुल नही बनने के कारण गांव के कुछ बच्चे एमडीएम के लोभ से जर्जर नाव से जान जोखिम में डालकर स्कूल जाने पर विवश है। ग्रामीण बताते है कि जर्जर नाव के कारण बच्चों को स्कूल में भेजने से परहेज कर रहे है। पुल नही बनने से विकास की गति पूर्णत: अवरुध है। यह गांव के लोग पूर्णत: खेती पर आधारित जीवन यापन करते है।
पुल नही होने से गांव के लोगों की खेती प्रभावित
भंटावारी गांव में रहने वाले तीन वार्ड में दैनिक मजदूरी करने वाले अनुसूचित जाति बहूल क्षेत्र में कुछ सामन्य व अतिपिछड़ा वर्ग के सम्पन्न किसान भी है । जिनका सभी खेत नासी नदी को पारकर ही जाना पड़ता है । इनका मुख्यतह जिविका का साधन खेती है । पुल नही बनने से किसानों को कृषी यंत्र से लेकर खाध बीज लेकर जाना टेढी खीर है । किसी तरह यहां के किसान सुखाड़ के माह फाल्गुन व चैत माह में गेंहू की खेती कर पाते है। बाढ बर्षात के दिनों छह माह तक जलजमाव होने से नाव आधारित जिंदगी जिते है गांव के लोग ।
ग्रामीणों को सड़क व पुल होने से अनुमंडल जाना हो जाएगा सुलभ
ग्रामीणों का कहना है कि गांव में सड़क पुल नही बनने से नाव से उसपार जाकर आटो पकड़कर पुपरी घुम कर 20-25 किलोमीटर दूर प्रखंड व अपुमंडल जाना होता है । पुल बन जाने से महज 9 किलोमीटर की दूरी तय करना पड़ेगा। साथ ही जिला मुख्यालय भी जाना भी आसान है । तथा बाजार हाट के लिए भी कम समय व कम वाहन खर्च करना पड़ेगा ।
क्या कहते हैं अधिकारी
राजेन्द्र पाठक (अंचल अधिकारी) : हम क्षतिग्रस्त नाव को बदलवाने की प्रक्रिया में लगे हुए हैं, तथा नाविक के लंबित राशि का भुगतान चेक द्वारा किया जाएगा ।
(कनीय अभियंता) : तय समय मे कार्य पूरा नहीं करने की वजह से संवेदक पर जुर्माना लगाया गया है तथा जल्द ही निर्माण कार्य शुरू कर कार्य को पूरा कर लिया जाएगा ।
क्या कहते हैं स्थानीय
नवल किशोर राउत (सीपीआई नेता) : पीएमजीएसवाई पुल को 2016 में बन जाना था किंतु अभीतक संवेदक द्वारा पुल नहीं बनाया गया है । नींव निर्माण कार्य भी पूरा नहीं हो सका है समय सीमा बीतने के बाद भी ।
गरभु मंडल (स्थानीय ग्रामीण) : नदी में डूबने के डर से मै बच्चों को विद्यालय नहीं भेजता हूँ । अक्सर अनहोनी होने रहती है आशंका ।
ननटुन दास (स्थानीय ग्रामीण) : मालिक हम सब तो जैसे तैसे गुजर-बसर कर लेते हैं लेकिन माल-जाल (मवेशी) के चारा लाने में दिक्कतों का बहुत सामना करना पड़ता है ।
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मनोज कुमार कर्ण व नीतीश कुमार मंडल
संयुक्त रिपोर्ट
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