राष्ट्रपति के नाम 4500वाँ पत्र सीतामढ़ी के दिलीप अरुण द्वारा
भारत के राष्ट्रपति के नाम 4500 वां पत्र तेम्हुआ 30-03-2017 सेवा में, आदरणीय महामहिम भारतीय राष्ट्रपति जी, चरणस्पर्श। हम सही नहीं हैं मगर आपकी सलामती की कामना करते हैं। हे राष्ट्रपति जी, पिछले बारह [12] वर्षों से हर रोज आपके नाम हम पत्र लिख रहे हैं और यह हमारा 4500 वां पत्र है।
हर पत्र में मैंने लिखा है कि-"प्लीज हमें आपसे मिलने के लिए थोड़ा -सा वक़्त दिया जाय तथा हमारे गांव के उन ग़रीबों को उनका वाज़िब हक़ दिया जाय जिनके परिवार के लोग बिमारी के कारण असमय मर चुके हैं।" मगर आज तक आपने हमें मिलने का वक़्त नहीं दिया है। लिहाज़ा हे मेरे पिता तुल्य सम्राट, क्या आप हमें यह बता सकते हैं कि आज की तारीख में 4500 चिट्ठी लिखने के बावजूद आपके महल का फाटक मेरे लिए क्यों नहीं खुला है? इतने पत्र भेजने के बावजूद आपने हमें मिलने की इजाजत क्यों नहीं दी हैं ? चन्द पत्रों के आलावा बांकी के हमारे सारे-के-सारे पत्र आपके कार्यालय में पहुंचे या नहीं पहुंचे? अगर नहीं पहुंचे तो क्यों नहीं पहुंचे ? आखिर कहाँ चले गए वे सारे-के-सारे पत्र ? और अगर पहुंचे तो क्या उसकी खबर आपको मिली या नहीं मिली ? अगर नहीं मिली तो क्यों नहीं मिली ? और अगर मिली तो फिर आपने मुझे मिलने की इजाजत क्यों नहीं दी ? क्या आपने मुझे मिलने की इजाजत इसलिए नहीं दी हैं क्योंकि मैं कोई राजनेता नहीं हूँ या किसी बड़े औद्योगिक घराने से मेरा कोई रिश्ता नहीं है?क्या आपने मुझे मिलने की इजाजत इसलिए नहीं दी हैं क्योंकि मैं कोई खिलाड़ी या फिल्म स्टार नहीं हूँ? मैं पूछता हूँ आपसे कि इस मुल्क के राजनेता या खिलाड़ी आपसे मिल सकते हैं,उद्योगपति या फिल्म स्टार आपसे मिल सकते हैं तो मैं आपसे क्यों नहीं मिल सकता हूँ? इन सबों से मिलने के लिए आपके पास वक्त है तो मुझसे मिलने के लिए आपके पास वक्त क्यों नहीं है? क्या मेरा गुनाह सिर्फ इतना है कि मैं इस प्रजातान्त्रिक मुल्क के सुदूर गांव-देहात में रहने वाला एक आम नागरिक हूँ? क्या हिंदुस्तान के सम्राट की नजरों में एक आम नागरिक की कोई अहमियत नहीं है? क्या इस मुल्क में एक आम नागरिक द्वारा अपने दिल में राजा से मिलने की ख्वाहिश पैदा करना गुनाह है? अगर "हाँ",तो क्या यह मान लिया जाय कि दिल्ली स्थित रायसीना के सीने पे खड़े आलिशान और अज़ीमुश्शान राष्ट्रपति भवन केवल ख़ास लोगों को अपनी सीढियाँ चढ़ने की मंजूरी देते हैं? क्या यह मान लिया जाय कि राष्ट्रपति भवन केवल ख़ास लोगों को अपनी चौखट लांघने की अनुमति देते हैं? क्या यह मान लिया जाय कि हिंदुस्तान के जहाँपनाह केवल ख़ास लोगों को अपने दीदार की इजाजत देते हैं? अगर "नहीं",तो हे भारतीय लोकतंत्र के पहरेदार,आप हमारे लोकतान्त्रिक अधिकारों की रक्षा करें क्योंकि लोकतंत्र में जनप्रतिनिधि पिता समान और जनता पुत्र समान होती है,और पुत्र का यह अधिकार है कि वह अपने पिता से मिलकर अपनी बातों को रखे और पिता होने के नाते हमारे हर अधिकार की रक्षा करना आपका कर्तव्य है। आपके जवाब के इंतजार में
-- आपका विश्वासी दिलीप अरुण "तेम्हुआवाला"
सीतामढ़ी (बिहार)
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